Sunday, July 27, 2008

इस जीत के बाद!

विश्वास मत की बहस और विवाद की धूल जमने के साथ ही राजनीतिक दलों ने अब अपने घरों की सुध लेना शुरू कर दिया है। विपक्ष ने अपने बागी सांसदों को पार्टी से निकाल दिया। सरकार ने विश्वास मत के लिए समर्थन के समय किए वायदे पूरे करने का काम शुरू कर दिया है।


सबसे पहले सबसे अहम सहयोगी द्रविड़ मुनेत्र कषगम की मांग पूरा करने के लिए सेतु सम्रुम पर सुप्रीम कोर्ट में एक नई बात कही कि राम ने ही सेतु तोड़ दिया था। सरकार का यह दावा विश्वास मत के बाद से मूर्छित पड़ी भाजपा को ताजा हवा के झोंके के समान लगा होगा। संसद में बहस के समय जो राजनीतिक ध्रुवीकरण नजर आया मोटे तौर पर उसके अगले लोकसभा चुनाव तक जारी रहने की संभावना है। विश्वास मत में भले ही कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जीते हों पर उसका परोक्ष लाभ विपक्ष को भी हुआ है।


सरकार के लिए इस जीत ने संभावना और संकट दोनों के द्वार खोल दिए हैं। एक बात तय मानना चाहिए कि अब चुनाव अपने नियत समय पर होंगे। सरकार के पास अगले नौ महीने मतदाता को लुभाने के लिए हैं। विधानसभा चुनावों में लगातार हार से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में आई निराशा इस जीत से छंटेगी। पार्टी नए उत्साह के साथ एक बार फिर जुटेगी।


कांग्रेस के लिए संकट उसके सहयोगी पैदा करेंगे। चुनाव के नजरिए से अब हर घटक अपनी जायज- नाजायज मांगे पूरी करवाने के लिए दबाव डालेगा। द्रमुक ने इसकी शुरुआत कर दी है। सरकार की नई सहयोगी समाजवादी पार्टी के लिए असली चुनावी रण क्षेत्र उत्तर प्रदेश है और लक्ष्य मायावती का राजनीतिक मानमर्दन है। जसे विश्वास मत में समाजवादी पार्टी ने हर तरह के हथकंडे अपनाने में कोई संकोच नहीं किया। वैसे ही वे चाहेंगे कि केंद्र सरकार की ताकत का हर तरह इस्तेमाल मायावती और बहुजन समाज पार्टी को घेरने में हो। इसके लिए समाजवादी पार्टी कुछ दिनों में केंद्रीय गृह मंत्रालय की मांग करे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।


विश्वास मत में विपक्ष की हार ने मुख्य विपक्षी दल भाजपा को अपने घाव सहलाने का समय दे दिया है। सत्तारूढ़ गठबंधन ने सबसे ज्यादा सेंध भाजपा के ही घर में लगाई। कांग्रेस का विकल्प होने का दावा करने वाली भाजपा को पता ही नहीं था कि उसके अपने घर में क्या हो रहा है। कर्नाटक जहां अभी दो महीने पहले वह विधानसभा चुनाव जीती है वहां से भी तीन सांसद पार्टी का साथ छोड़ गए। मान लीजिए कि सरकार विश्वास मत हार जाती तो क्या होता। उस हालत में मायावती, वामदल यूएनपीए और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सबके निशाने पर भाजपा होती।


हार ने भाजपा को इस हमले से बचा लिया। पार्टी में एेसे लोगों की कमी नहीं है जो सरकार के जीतने से खुश हैं। उनका मानना है कि इससे आडवाणी कमजोर हुए हैं। अब जिस पार्टी में अंदर ही एेसी सोच हो वह क्या तो विकल्प बनेगी और क्या संघर्ष में उतरेगी। दरअसल भाजपा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व की कमी से अभी तक उबर नहीं पाई है।


आडवाणी को पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का दावेदार भले ही घोषित कर दिया हो पर वे पार्टी के स्वाभाविक और निर्विवाद नेता नहीं बन पाए हैं। भाजपा में एक वर्ग ऐसा भी है जो मानता है कि आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से फायदे की बजाय नुक्सान हुआ है। ऐसे लोगों का मानना है कि वाजपेयी के लौटने का भ्रम बनाए रखना फायदेमंद होता। इस बात को हाल में हुए कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में बड़ी शिद्दत से महसूस किया गया। पूरे प्रदेश से वाजपेयी के कार्यक्रम की मांग हो रही थी। पूरे विश्वास मत के दौरान भाजपा दरअसल कहीं भी कांग्रेस से लड़ती नजर नहीं आई तो इस वजह से कि अभी उसके अंदर ही संघर्ष चल रहा है।विश्वास मत के लिए चली राजनीति का सबसे ज्यादा फायदा मिला है बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती को।


राजनीतिक रूप से अछूत बनी मायावती और उनकी पार्टी न केवल राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गई बल्कि वे प्रधानमंत्री पद की दावेदार भी बन गईं। सत्रह सांसद लेकर सात दिन में उनका कद एक सौ तीस सांसदों की पार्टी के नेता आडवाणी से बड़ा नजर आने लगा। पिछले चार साल से जिस तीसरे मोर्चे की बात हो रही थी, वह आकार लेने लगा। मुलायम ¨सह यादव के इस मोर्चे में रहते वामदलों के बावजूद यह मोर्चा क्षेत्रीय ताकतों का मंच नजर आता था।


मायावती के आने से अचानक उसकी राष्ट्रीय छवि नजर आने लगी। इसलिए कि मुलायम सिंह यादव की बनिस्पत मायावती मोर्चे में शामिल सभी दलों के वोट बैंक में कुछ जोड़ने की हैसियत रखती हैं। इसलिए मायावती कांग्रेस के जनाधार के लिए खतरा हैं और भाजपा के नेतृत्व के लिए। प्रकाश करात को इन दोनों से लड़ना है। इसलिए वामदल मायावती के साथ हैं। यह सैद्धांतिक हठवादिता की राजनीति और व्यवहारिक राजनीति का गठजोड़ है।


प्रदीप सिंह

Friday, July 25, 2008

खरीदे वोटों से जीती सरकार

कांग्रेस डीलरों की मदद से डील पर आगे बढ़ने को तैयार है। डीलरों की घिनौनी करतूतों ने लोकतंत्र के मंदिर को शर्मशार कर दिया। ये वहीं डीलर हैं जो लगातार कह रहे थे कि उनके संपर्क में बसपा के तीन सांसद है। शाम होते-होते उनके काले कारनामों का जब खुलासा होता है तो देश की जनता के पास इन करतूतों को देखने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।


डीलरों की इन करतूतों से जहां लोकतंत्र शर्मशार हुई वहीं देश मुस्तकबिल बनने के ख्वाब संजोए मायावती की भी रातों की नींद उड़ गई। लेकिन उन लोगों ने मायावती के साथ भाजपा और वाम दलों को एक ऐसा हथियार दे दिया जिसका लोकसभा चुनावों में भरपूर इस्तेमाल होगा।

मायावती जहां अपने वोटरों को यह कहकर लूभाने की कोशिश करेंगी कि कांग्रेस और उनके सहयोगियों ने दलित की बेटी को देश का मुस्तकबिल बनने से रोक दिया वहीं भाजपा भी इस मुद्दा को भूनाने का पुरजोर प्रयास करेगी।
मध्यप्रदेश, कर्नाटक में सरकार होने के बावजूद भाजपा के सांसदों ने जिस प्रकार सरकार के साथ वोट किया, इसकी सारी कोर कसर भाजपा यह कहकर पूरा करने की कोशिश करेगी कि कांग्रेस ने हमारे सांसदों को खरीदकर अपनी सरकार बचाई है।

वाम दल भी लंबे समय से चाह रहे थे कि सरकार का साथ छोड़े, लेकिन उन्हें मौका हाथ नहीं लग रहा था। करार पर सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद उनको लगने लगा था कि इसे चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है लेकिन जब सरकार विश्वास मत जीत गई तो ऐसा लगा कि उनके हाथ से सबकुछ छूट गया लेकिन भाजपा के कारनामे ने उन्हें भी मौका दे दिया कि जीत तो खरीदे हुए वोटे से हुई है।


कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि महंगाई, बिजली पानी नहीं बल्कि करार और शर्मसार हुई संसद को राजनीतिक दल चुनावी मुद्दा बनाकर 15वीं लोकसभा पर कब्जा करने की कोशिश करेंगे।

Saturday, July 12, 2008

विश्वास मत से पहले 'सीबीआई की कार्रवाई क्यों'

बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता और उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती का आरोप है कि केंद्र सरकार सीबीआई का दुरुपयोग करके उनके ख़िलाफ़ राजनीतिक साज़िश कर रही है.

शुक्रवार को केंद्रीय जाँच एजेंसी सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए उसके पास 'पर्याप्त' सबूत है.

मायावती ने शनिवार को दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन में कहा कहा कि ये महत्वपूर्ण है कि पाँच साल से अदालत में चले आ रहे इस मामले में केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने बहुजन समाज पार्टी के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद ये कदम उठाया है.

उनका ये भी आरोप था कि लोकसभा में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के विश्वास मत से पहले सीबीआई ने अपने शपथ पत्र की जानकारी मीडिया में 'लीक' की है जबकि उन्हें या उनके वकील को इस बारे में जानकारी अब तक नहीं मिली है.

उनका कहना था कि सीबीआई के उठाए क़दमों का संबंध यूपीए के विश्वासमत हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी के साथ हुए समझौते से है.
उन्होंने आरोप लगाया कि हर चुनाव से पहले केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टियाँ चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा बहुजन समाज पार्टी के नेतृत्व के ख़िलाफ़ सत्ता का दुरुपयोग करती हैं.
ग़ौरतलब है कि मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले को ख़ारिज करने की अपील की थी और इसी अपील की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से जवाब देने को कहा था.

बसपा निशाने पर क्यों?

कांग्रेस और भाजपा जैसी यथास्थितिवादी पार्टियों की ताक़त कम होती जा रही है इसलिए अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए वे संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करती हैं

दिल्ली में उन्होंने कहा कि ये पार्टियाँ (कांग्रेस-भाजपा) न केवल सत्ता का दुरुपयोग करती हैं बल्कि संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए संवैधानिक संस्थाओं का भी दुरुपयोग करती हैं.

उन्होंने कहा, "बहुजन समाज पार्टी इसलिए निशाने पर रहती है ताकि उसका मानवता का आंदोलन, सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय आंदोलन आगे न बढ़ने पाए."
उनका कहना था, "कांग्रेस और भाजपा जैसी यथास्थितिवादी पार्टियों की ताक़त कम होती जा रही है इसलिए अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए वे संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करती हैं."

उनका कहना था कि सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में जो शपथ पत्र दाखिल किया है उससे जनता के बीच एक भ्रांति फैल रही है और इसलिए उन्होंने मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखनी पड़ रही है. उनका कहना कि अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय में मामला लंबित होते हुए वे इस तरह से पत्रवार्ता नहीं करतीं.

समाजवादी पार्टी की शर्त?

अपनी पत्रवार्ता में मायावती ने कई सवाल उठाए. एक तो उन्होंने कहा कि जब सीबीआई के पास जबाव दाख़िल करने के लिए दस दिनों का समय बचा था तो क्यों दस दिन पहले जवाब दाख़िल किया गया. कहने को तो सीबीआई देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी है लेकिन वह केंद्र के मुलाज़िम की तरह कार्य करती है

उनका आरोप है कि विश्वासमत को देखते हुए ऐसा किया गया है वरना तो यह मामला सीबीआई के पास पाँच सालों से है. उन्होंने कहा कि सीबीआई ने जवाब की प्रति मीडिया को तो एक दिन पहले उपलब्ध करवा दी लेकिन बसपा के पास यह जवाब अभी तक नहीँ आया है.

मायावती ने आरोप लगाया, "कहने को तो सीबीआई देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी है लेकिन वह केंद्र के मुलाज़िम की तरह कार्य करती है." उन्होंने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने यूपीए सरकार को समर्थन देने की शर्त रखी है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी. बसपा नेता ने एक अख़बार की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि समाजवादी पार्टी सीबीआई में अपना डायरेक्टर नियुक्त करवाना चाहती है.
बीबीसी से सभार