Saturday, May 30, 2009

वापस लौटे कांग्रेस के वोटर

दलितों के बसपा से और मुसलमानों के सपा से मोहभंग ने कांग्रेस की झोली भरी।

मृगेंद्र पांडेय

लोकसभा चुना परिणाम आने के बाद एक बात तो तय हो गई कि उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने इस चुना में जाति और धर्म के बंधनों से परे हटकर ोट डाले। कांग्रेस के पास उसके परंपरागत ोटर एक बार फिर लौट आए। क्षेत्रीय दलों के उभार के बाद दलित, मुस्लिम जो बड़ी संख्या में कांग्रेस का साथ छोड़कर चले गए थे, उन लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में ोट दिया। दलित ोटर जो बसपा के साथ थे, उनके कांग्रेस में जाने का एक अहम कारण यह रहा कि मायाती ने बड़ी संख्या में सर्ण और दागी उम्मीदारों को मैदान में उतारा। माया के इस कदम से दलित ोटरों को लगा कि उनके साथ मायाती भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही बर्ता कर रहीं हैं। ोट तो उनके होंगे, लेकिन प्रतिनिधि सर्ण होगा, इसलिए बड़ी संख्या में दलित ोटर कांग्रेस के पाले में गए और माया का जादू महज 20 सीट पर ही चल पाया।

बात अगर मुसलमानों की कि जाए तो बाबरी ध्िंस के बाद मुसलमानों की पहली पसंद समाजादी पार्टी हो गई थी। सपा की नीतियों में आए बदला और कल्याण सिंह को साथ लेने के बाद धीरे-धीरे मुसलमान भी नए समीकरण खोजने लगे। परूांचल में मुसलमानों ने कई पार्टियां बनाई और अपने उम्मीदार भी खड़े किए। भले ही इन्हें सफलता न मिली हो, लेकिन यह मुसलमान सपा से छिटक गए। यह कहना कि बड़ी संख्या में मुसलमान कांग्रेस के साथ गए, यह गलत होगा। क्योंकि मुस्लिम बहुल सीट पर कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हो पाई है। मुस्लिम ोटर कांग्रेस और बसपा दोनों मे गए, जिसके कारण कांग्रेस के तीन और बसपा के दो सांसद जीत दर्ज करने में सफल रहे। मुस्लिम बहुल मऊ, आजमगढ़ और घोसी में से किसी भी सीट पर कांग्रेस जीत दर्ज नहीं कर पाई। सर्ण मतदाता जो धिानसभा चुना में बसपा के साथ था, ह इस बार तीन भागों में बंट गया। बड़ी संख्या में ब्राह्मण ोट बसपा से छिटककर कांग्रेस और भाजपा के साथ गए। हालांकि भाजपा को इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस के लिए यह ोट संजीनी के रूप में काम कर गया।

कल्याण सिंह के प्रभाोले इलाकों में लोध ोटर जो भाजपा के साथ थे, सपा के साथ हो लिए। अगर लोध ोटर सपा के साथ न आते और मुस्लिम ोटरों के छिटकने का असर यह होता कि समाजादी पार्टी 12 से 15 सीट पर सिमटकर रह जाती। शायद मुलायम सिंह को इस बात का अंदाजा था, इसलिए उन्होंने कल्याण को पहले ही अपने पाले में कर लिया और प्रदेश में हार की कड़ी घूंट पीने से बच गए।

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